
मेरे अंदर एक आग जल रही है जो मुझे चैन से जीने नही देती । वैसे भी एक स्त्री को जीने के लिये चाहिये क्या पेट भर खाना, कपडा और सिर पे छत, शायद थोडे से जेवर थोडे अच्छे कपडे मैं अपनी आग को समेट कर मुस्कुराता हूँ मेहमानों का स्वागत करता हूँ घरवालों को खुश रखने का भरसक प्रयास करता हूँ लेकिन कोई मुझे भीतर से कचोटता रहता है क्यूं नही मैं अपने स्वत्व को ललकारती क्यूं नही अपनी अस्मिता को उभारती क्यूं नही अपना आप निखारती क्यूं , क्यूं, क्यूं, मेरे अंदर की यही आग मुझे जला रही है जो मुझे चैन से जीने नही देती ।
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