उम्मीदों को दम घुटते देखा है मैंनें
सपनों को टूटते देखा है मैंनें
आशाओं की पलकों पर
ओस सी मखमली
पल में ढुलक पड़ती
कपोलों के धरातल पर अपना अधिकार समझ
ये जान कि व्यर्थ हो जाएगी ये बूंद
अपने में समेटे एहसास को
ये बूंद हो सकती है निर्जीव
लेकिन एहसास नहीं
वो तो फिर जागेंगे
छूने को नया आकाश
फिर उमड़ेंगे
शायद फिर बरसने को
या फिर हवा के तेज़ बहाव के साथ आगे बढ जाने को
तलाशने नया धरातल
नयी उम्मीद, नयी आशा, नये एहसास के साथ................
0 comments:
Post a Comment